हरिशंकर गोयल (लेखक सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी हैं)
जयपुर। लिबरल्स, सेकुलर्स, खैराती और चमचों के मुंह लटके हुए थे । नये साल के जश्न का हैंगओवर अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि यह वज्रपात हो गया । वैसे “वज्रपात” शब्द से इन्हें आपत्ति हो सकती है क्योंकि “वज्र” इंद्र का अस्त्र है और सनातनी संस्कृति का प्रतीक है । ये लिबरल्स सनातनी संस्कृति के हर शब्द हर प्रतीक से इतना ही चिढते हैं जितना लाल कपड़े से सांढ चिढता है । सुना है कि “जय श्री राम” के उद्घोष से “ताड़का” भी चिढती थी । पर मैं तो यह समझता हूं कि एक ताड़का ही क्यों सारी राक्षस प्रजाति “जय श्री राम” से चिढती थी और आज भी चिढती है ।
नये साल की शुरुआत में ही ऐसी मार झेलने को मिलेगी , ऐसा सोचा नहीं था इन्होंने , पर ऐसा हो गया । और वह भी इनकी आशा के एकमात्र दीपक सुप्रीम कोर्ट द्वारा । अब कहां जायें, क्या करें ? कुछ समझ में नहीं आ रहा है इन्हें । सुप्रीम कोर्ट से तो ऐसी उम्मीद नहीं थी इनको । अब सुप्रीम कोर्ट भी “बेवफा” हो गया है क्या ? या वह भी “गोदी कोर्ट” हो गया है । हो सकता है कि थोड़े दिनों बाद यह शब्द प्रचलन में आ जाये । ये लिबरल्स किसी को कुछ भी कह सकते हैं क्योंकि “अभिव्यक्ति की आजादी” के दीवाने बताते हैं खुद को ये लोग और किसी को कुछ भी कहने का, गाली देने का लाइसेंस भी ले रखा है इन्होंने । अब ये मत पूछ लेना कि इन्हें ये लाइसेंस किसने दिया है ? ये तो खुद मुख्तियार हैं ।
सन 2016 में नोटबंदी का जिन्न बोतल से निकल कर बाहर आया था । बहुत तांडव किया था उसने तब । लोगों को ATM की लाइन में लगवा दिया था । पूरे देश में अफरा तफरी फैल गई थी । जिन 100 – 50 के नोटों को कोई पूछता नहीं था, अचानक उनकी पूछ बढ गई और वे एक दामाद की तरह इतराने लगे , नखरे दिखाने लगे । बेचारे 500 – 1000 के नोट बड़े बूढों की तरह एकदम से अनाथ हो गये और कचरा पेटी की शोभा बढाने लगे । तब हमने एक खानदानी राजकुमार को ATM की लाइन में खड़े देखा था । बेचारे का कुर्ता भी फटा हुआ था और जेब भी “उधड़ी” हुई थी । जैसे “ग्रांड ओल्ड पार्टी” की आज हालत है वैसी ही लुटी पिटी हालत “युवराज” की लग रही थी । लग रहा था कि उनका सारा “काला धन” पल भर में ही कचरा हो गया है । बेचारे पर ऐसी मार पड़ी थी की जगह जगह से “सूजी” पड़ी थी उसकी खाल । दिखा भी नहीं सकता था वह ।
तब कुछ खैराती पत्तलकार अपने अपने स्टूडियोज से काले नागों की तरह बाहर निकल पड़े थे और फुंकार फुंकार कर विष वमन कर रहे थे । लोगों के मुंह में माइक घुसेड़ कर कहलवाना चाहते थे कि वे बहुत दुखी हैं इस नोटबंदी से मगर लोग उनकी बातों में फंस ही नहीं रहे थे । “कैसे कैसे नालायक लोग हैं , कोई बोलने को तैयार ही नहीं है । इससे बड़ा डर का माहौल और क्या होगा” ? बड़बड़ा रहे थे खैराती पत्तलकार ।
सन 2017 के उत्तर प्रदेश और गुजरात के विधान सभा चुनावों में नोटबंदी को इन्होंने बहुत बड़ा मुद्दा बनाया मगर जनता ने नकार दिया । अब ये लोग लोकसभा चुनाव 2019 में भी उसी नोटबंदी के जिन्न को लेकर आ गये । इसके अलावा “राफेल” में भ्रष्टाचार का इल्जाम लगाकर मामला सुप्रीम कोर्ट ले जाया गया और “चौकीदार” को “चोर” बताने की पटकथा लिख दी गई । मगर ये जनता है साहेब, ये सब जानती है कि कौन चोर है और कौन चौकीदार । 2019 के चुनावों ने इन सबकी बोलती बंद कर दी ।
एक कहावत है कि “चोर चोरी से जाये मगर हेराफेरी से न जाये” । इसी कहावत को ध्यान में रखकर इन लिबरलों ने अपने “पिठ्ठुओं” को बुलवाया और सुप्रीम कोर्ट में 58 जनहित याचिकाऐं डलवा दी “नोटबंदी” के खिलाफ । कुछ लोगों ने पूछा कि 58 याचिकाऐं क्यों डलवाई तो इन लिबरलों ने पता है क्या कहा था ? कहने लगे कि 56 इंच का बहुत हौवा खड़ा किया था न इसलिए उससे ज्यादा 58 याचिकाऐं डलवाई गई हैं । सरकार के हर फैसले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने का जैसे प्रचलन हो गया है और सुप्रीम कोर्ट भी जैसे तैयार ही बैठा है सरकार पर सवारी करने के लिए । सरकार और सुप्रीम कोर्ट का आधा समय तो इन फालतू की याचिकाओं में ही जाया हो रहा है मगर कोई क्या कर सकता है । इन लिबरलों की आखिरी उम्मीद सुप्रीम कोर्ट ही है ।
आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ गया । 5 जजों की संविधान पीठ ने इन 58 याचिकाओं को निरस्त कर दिया और नोटबंदी के निर्णय को सही बता दिया । इस निर्णय के पक्ष में चार जज थे और इसके विपक्ष में एक जज थी । अब लिबरल्स जार जार रो रहे हैं । नये साल में ये क्या तोहफा मिला है उन्हें और वह भी सुप्रीम कोर्ट से । जब कोई अपना आदमी ही मारता है तो चोट ज्यादा लगती है । ऐसा नहीं है कि ये लिबरल्स सुधर जायेंगे , बल्कि अभी तो और ज्यादा प्रपंच रचेंगे । 2024 के चुनावों तक ये सिलसिला चलता ही रहेगा ।